भू -अर्जन, विस्थापन से उत्पन्न समस्या ‘पुनर्वास, पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम में निहित अधिकारों का हनन और प्रबंधन द्वारा दमनात्मक कार्यवाही के खिलाफ आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया गया
छत्तीसगढ़/कोरबा :- ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति ने हरदीबाजार स्थित शारदा मंगलम भवन में नव वर्ष 2025 में जिले के कोयला खदानों और अन्य संस्थानों में भूविस्थापितों की समस्याओं और चलाये जा रहे आंदोलनों के विस्तार के लिए *नई चुनोतियां और संघर्ष के रास्ते* विषय पर एक सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें 11 सूत्रीय मांगो पर प्रस्ताव लेकर आगे की आंदोलन की रूपरेखा पर चर्चा की गई ।
सम्मेलन की मसौदे को रवींद्र जगत एवं कुलदीप सिंह राठौर द्वारा वाचन किया गया जिसके बाद संगठन के अध्यक्ष सपुरन कुलदीप ने जिले में आद्योगिकीकरण और उतपन्न समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कोरबा क्षेत्र में औद्योगीकरण 60 के दशक से शुरू हो गया था और अब बड़े पैमाने पर कोयला खनन, पॉवर प्लांट से होने वाले बिजली उत्पादन और आपूर्ति के चलते इस क्षेत्र के खनिज संसाधनों का दोहन, परियोजनाओं का विस्तार और खनिज परिवहन (नई रेल लाइन) भी राष्ट्रिय हित में लगातार हो रहा है इन परियोजनाओं के चलते बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया हुई और स्थानीय समुदाय को अपने निवास गाँव, कृषि भूमि और वन भूमि जिस पर इनके पारंपरिक निस्तार और अधिकार निहित थे उससे विस्थापित होना पड़ा आज तक भी भू-विस्थापितों को पूर्ण एवं विधिवत पुनर्व्यवस्थापन नहीं मिल पाया जो उनका अधिकार है ।
आज की स्थिति में बात करें तो भू-अर्जन का कानून बदल कर अब भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 लागू है इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति, 2007 भी लागू है इसके साथ ही मुआवज़ा को लेकर राज्य शासन के विभिन्न आदेश भी मौजूद है जिसका मकसद है भू-अर्जन के एवज में लोगों को उचित प्रतिकर उपलब्ध करवाना इन सब के बावजूद आज भी भू-विस्थापितों जिनसे भूमि का अर्जन दशकों पहले किया जा चूका है लेकिन उनके रोजगार, मुआवज़ा और पुनर्वास आज भी लंबित है जिनके निराकरण के लिए केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के संस्थाओं और विभिन्न विभागों से मांग किये जाने और आवश्यकता होने पर आंदोलन को और तेज करने का आव्हान किया गया तथा अलग अलग मंच से किये जा रहे संघर्षो की एकता स्थापित करने के लिए प्रयास किये जाने का निर्णय लिया गया है जिन प्रस्तावों के आधार पर आगे की रणनीति पर कार्यवाही तेज होगी ।
उसमे बताया गया है कि जिले की पुनर्वास समिति अपना काम सही ढंग से नही कर रही है और केंद्रीय सरकार द्वारा पारित भूमि, अर्जन, पुनर्वासन, पुनर्वव्यस्थापन में उचित प्रतिकर पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2015 का पालन करने , परियोजना स्तर पर पुनर्वास समिति का गठन करने , वन भूमि पर आश्रित जनजाति व अन्य परम्परागत निवासियों के अधिकार का सरंक्षण , भावी पीढ़ियों के रोजगार ,अर्जन के बाद जन्म होने वाले को रोजगार, बंद होने वाले खदानों की बैकफ़ीलिंग , आउटसोर्सिंग कामो में स्थानीय व भूविस्थापित बेरोजगारों की 80 प्रतिशत भर्ती सुनिश्चित करने ,युवाओं और महिलाओं की कौशल उन्नयन, व रोजगार की व्यवस्था करने , पुनर्वास व प्रत्यक्ष प्रभावित ग्रामो में शिक्षा ,स्वास्थ ,रोजगार के साथ बुनियादी सुविधाओं में विस्तार करने, अर्जित ग्रामो के मकान व अन्य परिसम्पत्तियों की केंद्रीय मूल्यांकन बोर्ड के मार्गदर्शिका के अनुसार मुआवजा भुगतान , हैवी ब्लास्टिंग और गांव के नजदीक खनन कार्य पर रोक लगाने, आंदोलन के सविंधानिक अधिकार के दमन कार्यवाही बंद करने जैसी महत्वपूर्ण मांगो पर उच्च संस्थाओं को ज्ञापन सौंपने, आने वाले दिनों में इन मांगों के समर्थन में व्यापक आंदोलन विकसित करने का निर्णय लिया गया है ।
बद्री प्रसाद राठौर, मदन राठौर चुलेश्वर राठौर , आवेज खान के मार्गदर्शन में सम्मेलन की अध्यक्षता केशव नारायण जायसवाल , रविन्द्र जगत , उमा गोपाल, गणेश सिंह उइके , अनुसुइया राठौर ,अशोक पटेल ने किया तथा सन्तोष चौहान, सन्तोष महंत, ललित महिलांगे, भागीरथी, रामाधार , नीलम पटेल ,पवन पटेल ,अखिलेश कंवर , धनकुंवर, सावित्री ढीवर, सूरज कंवर , अमृता यादव , दुर्गाबाई, नवधा, जानकी, लखैतिन बाई, ईश्वर, शशिकला राठौर , सन्ध्या राठौर, आशा कंवर सुरुज कुंवर , ललिता कंवर , कौशिलिया बाई , राजेश्वर महंत , लंबोदर , सोनू चौहान आदि ने अपना योगदान दिया इस मौके पर भारी संख्या में क्षेत्र के भूविस्थापित शामिल हुए ।