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उपभोक्ता फोरम कोरबा ने एनटीपीसी कोरबा अस्पताल को पाया मरीजों से भेदभाव करने का दोषी, दी कड़ी चेतावनी

छत्तीसगढ़/कोरबा :-  एनटीपीसी, कोरबा अस्पताल अब मरीजों के साथ भेदभाव नहीं कर सकेगा। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एक प्रकरण में सुनवाई करते हुए इस आशय का आदेश पारित किया है।

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17 अप्रेल, 2025 को पारित अपने आदेश में आयोग ने लिखा है कि, एनटीपीसी अस्पताल प्रबंधन को निर्देशित किया जाता है कि वे भविष्य में संविधान में आम नागरिक को अनुच्छेद 14 एवं 21 में प्रदत्त समानता एवं त्वरित उपचार के मौलिक अधिकार के उल्लंघन में कोई कार्य न करें। मरीजों के उपचार के संबंध में किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगा। विरोधी पक्षकार अपने अस्पताल में नीतियों एवं प्रक्रियाओं को स्वास्थ्य सेवा में स्थापित नैतिक एवं कानूनी मानकों के अनुरूप तैयार करें। आयोग ने अपने आदेश में यह भी लिखा है कि अस्पताल प्रबंधन ने परिवादी के प्रति सेवा में कमी एवं व्यवसायिक कदाचरण का कृत्य किया जाना प्रमाणित पाया जाता है। अस्पताल प्रबंधन द्वारा किया गया कृत्य असंवैधानिक तथा सेवा में कमी का घोर कदाचरण के श्रेणी का कृत्य है। गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान एनटीपीसी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं डा. धमेन्द्र द्वारा आयोग को बताया गया था कि अस्पताल के प्रोटोकॉल के तहत एनटीपीसी कर्मचारियों एवं उनके परिवार के सदस्यों को इलाज में प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन एनटीपीसी अस्पताल प्रबंधन द्वारा प्रोटोकॉल का कोई लिखित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। परिवादी की ओर से अधिवक्ता अब्दुल नफीस खान ने मजबूती के साथ आयोग के समक्ष पैरवी की और प्रकरण को परिणाम तक पहुंचाया। केस में विरोधी पक्षकार यानी एनटीपीसी, कोरबा अस्पताल के सीएमओ डा. विनोद काल्हटकर, शल्य चिकित्सक धमेन्द्र प्रसाद के अधिवक्ता आरएन राठौर ने पैरवी की। प्रकरण में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग की अध्यक्ष श्रीमती रंजना दत्ता एवं सदस्य पंकज कुमार देवड़ा की बेंच द्वारा सुनवाई करते हुए अंतिम आदेश पारित किया गया।

यह था पूरा मामला

एनटीपीसी, जमनीपाली निवासी मोहम्मद सादिक शेख द्वारा एनटीपीसी, कोरबा के शल्य चिकित्सक धमेन्द्र प्रसाद एवं सीएमओ डा. विनोद काल्हटकर के विरूद्ध इलाज में भेदभाव करने संबंधी प्रकरण अपने अधिवक्ता अब्दुल नफीस खान के माध्यम से जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में प्रकरण प्रस्तुत किया गया था। इसमें बताया गया था कि 2 अगस्त, 2024 को घर की छत पर कार्य करने के दौरान परिवादी फिसलकर गिर जाने से उसके बायें पसली में चोटें आई थी। त्वरित इलाज के उम्मीद में परिवादी ने एनटीपीसी, कोरबा के विभागीय अस्पताल में शल्य चिकित्सक धमेन्द्र प्रसाद को दिखाया था। डॉक्टर ने एनटीपीसी कर्मचारियों को प्राथमिकता देने के बाद मोहम्मद सादिक शेख को बुलाया तथा दवाइयां लिखते हुए एक्सरे के लिए कहा, लेकिन देर हो जाने के कारण एक्सरे कक्ष बंद हो चुका था। डाक्टर ने दूसरे दिवस आकर एक्सरे कराने कहा। 3 अगस्त, 2024 को परिवादी मोहम्मद सादिक शेख ने एक्सरे का शुल्क जमा कर एक्सरे करवाया तथा इसकी रिपोर्ट दिखाने डा. धमेन्द्र प्रसाद के पास गए। श्री शेख का दूसरा क्रम था, लेकिन इस बीच एक के बाद एक एनटीपीसी कर्मचारी इलाज के लिए आने लगे और डा. धमेन्द्र प्रसाद के द्वारा परिवादी को छोड़ एनटीपीसी कर्मचारियों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें देखा जाने लगा। इस पर मोहम्मद सादिक शेख द्वारा आपत्ति जताई गई और कहा गया कि उनका दूसरा नम्बर है, और उनके नम्बर लगाने के बाद लगातार चार एनटीपीसी कर्मचारी को देखा जा रहा है, इस डा. धमेन्द्र प्रसाद ने कहा कि यह उनका प्रोटोकॉल है कि एनटीपीसी के कर्मचारी और उनके परिवार का इलाज पहले किया जाएगा। मोहम्मद सादिक शेख ने प्रोटोकॉल का लिखित आदेश दिखाने की बात कही तो इस पर डा. धमेन्द्र प्रसाद भड़क गए और उनके द्वारा परिवादी के साथ दुर्व्यवहार करते हुए सीएमओ से बात करने कहा गया। सीएमओ डा. विनोद काल्हटकर ने भी कहा कि अस्पताल का प्रोटोकाल है कि एनटीपीसी कर्मचारी को इलाज में प्राथमिकता दी जाएगी। सीएमओ से भी प्रोटोकॉल का कोई आदेश है तो दिखाने कहा गया तो उन्होंने भी परिवादी के साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया। मोहम्मद सादिक शेख ने मामले की शिकायत पहले दर्री थाने में की। थाने से एक माह बाद लिखित में, प्रकरण हस्तक्षेप योग्य नहीं है, का जवाब दिया गया। इसके बाद प्रकरण जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में प्रस्तुत किया गया।

जिला उपभोक्ता प्रतितोषण आयोग कोरबा ने अपने आदेश में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि एनटीपीसी अस्पताल भविष्य में संविधान से प्रदत्त समानता एवं त्वरित उपचार के मौलिक अधिकार के उल्लंघन में कोई कार्य न करें। मरीजों के उपचार के संबंध में किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगा और अपने अस्पताल में नीतियों एवं प्रक्रियाओं को स्वास्थ्य सेवा में स्थापित नैतिक एवं कानूनी मानकों के अनुरूप तैयार करें।

क्या कहता है अनुच्छेद 14 और 21

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में ‘कानून के समक्ष समानता’ और ‘कानूनों का समान संरक्षण’ की गारंटी दी गई है. यह अनुच्छेद, देश के सभी नागरिकों को समान व्यवहार का अधिकार देता है और अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। इसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।
प्रत्येक नागरिक एक उपभोक्ता है, और उपभोक्ता कानून के तहत उपभोक्ताओं के अधिकार को संरक्षित किया गया है।

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