छत्तीसगढ़/कोरबा :- खनन क्षेत्र से जुड़े भूविस्थापितों के अधिकारों और रोजगार की लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। माटी अधिकार मंच ने पत्रकारवार्ता कर यह गंभीर आरोप लगाया है कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा 1991 में लागू की गई पुनर्वास नीति का आज तक सही तरीके से पालन नहीं हो सका, जिससे हजारों भूविस्थापित परिवार रोजगार से वंचित हैं।
पत्रकारवार्ता में मंच के अध्यक्ष ब्रजेश श्रीवास, सचिव रविशंकर यादव और विधि सलाहकार लोकेश कुमार प्रजापति सहित अन्य पदाधिकारियों ने कहा कि कोरबा क्षेत्र में एसईसीएल द्वारा वर्ष 1955-56 से कोयला उत्खनन किया जा रहा है। प्रारंभ में अंडरग्राउंड माइंस के जरिए खनन होता था, जो 1978-79 से ओपन कास्ट खदानों में तब्दील हो गया। खदानों के लिए अधिग्रहित की गई भूमि के एवज में प्रत्येक खातेदार परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का आदेश तत्कालीन बिलासपुर जिलाधीश ने जारी किया था।
उन्होंने बताया कि 2 मार्च 1979 को तत्कालीन कलेक्टर एम.के. दीक्षित ने निर्देश दिया था कि अगर परिवार में कोई सदस्य रोजगार योग्य नहीं है तो खातेदार जिस पर निर्भर है, उसे भी नामांकित किया जा सकता है। इसके बाद 31 जनवरी 1983 को वाणिज्य एवं उद्योग विभाग द्वारा निर्देशित किया गया कि लीजडीड में यह शर्त जोड़ी जाए कि अर्जित भूमि के बदले एक सदस्य को कुशल या अकुशल श्रमिक के रूप में नौकरी देना अनिवार्य होगा।
पुनर्वास नीति 1991 का हवाला देते हुए मंच ने कहा कि यह नीति 25 सितंबर 1991 को राजपत्र में प्रकाशित की गई थी, जिसमें स्पष्ट है कि 1991 के बाद अर्जित भूमि के खातेदारों को रोजगार, प्रशिक्षण और पुनर्वास मिलना चाहिए। इसके अलावा भूमि लौटाने की शर्त भी लीजडीड में जोड़ी गई थी।
मंच ने आरोप लगाया कि एसईसीएल और संबंधित कंपनियां इन नियमों और शर्तों का पालन नहीं कर रही हैं, जिससे ग्रामीण बेरोजगारी, विस्थापन और आक्रोश के शिकार हो रहे हैं। पीड़ित परिवारों ने वर्षों से आवेदन दिए हैं, लेकिन निराकरण नहीं होने पर वे आंदोलन के लिए बाध्य हो गए।
सबसे गंभीर बात यह रही कि 5 जून को रोजगार की मांग को लेकर खदान बंद करने वाले 4 व्यक्तियों को जेल भेज दिया गया। मंच ने इसे प्रशासनिक विफलता बताते हुए कहा कि शासन के निर्देशों का पालन कर, उन्हें जेल भेजने की बजाय रोजगार दिया जाना चाहिए था।
मांगें और चेतावनी
मंच ने स्पष्ट किया कि अगर शासन-प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर नहीं हुआ, तो भूविस्थापितों का आंदोलन और उग्र हो सकता है। उन्होंने सरकार से मांग की कि:
1991 पुनर्वास नीति का पूर्ण पालन कराया जाए
सभी योग्य खातेदार परिवारों को रोजगार दिया जाए
आंदोलनकारियों को जेल से रिहा कर पुनः रोजगार दिया जाए
भूमि लौटाने की शर्त पर भी तत्काल कार्यवाही हो